सन 1969 में स्वामी श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज के गुरु श्री योगानंद विज्ञानी जी ऋषिकेश में निवास करते थे. स्वामी विष्णु तीर्थ जी को भी ऋषिकेश बहुत प्रिय था. अपने जीवन के अन्तिम वर्षो में उन्होंने अपने शिष्यों से ऋषिकेश में आश्रम बनाने की इच्छा व्यक्त की. उनके परम प्रिय शिष्य स्वामी शिवोम् जी ने उनकी इस इच्छा को पुरा करने का बीडा उठाया. श्री देवेन्द्र विज्ञानी जी के पास ऋषिकेश में थोडी ज़मीन पड़ी हुयी थी. उन्होंने वो ज़मीन स्वामी विष्णु तीर्थ जी को दान दे दी. ज़मीन मिलने के बाद सन 1959 में शिवोम् जी ने आश्रम का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. थोड़े समय में ही आश्रम बनकर तैयार हो गया. स्वामी विष्णु तीर्थ जी ने चार वर्षों तक इस आश्रम में निवास किया. फिर स्वामी जी की महासमाधि के बाद शिवोम् जी ने आश्रम की बागडोर संभाली. स्वामी शिवोम् तीर्थ जी महाराज स्वयं में एक महान गुरु थे. उन्होंने कई अन्य आश्रमों की स्थापना भी की जिनमे देवास तथा न्यू यार्क के आश्रम मुख्य हैं.
सन 1986 में शिवोम् जी ने परम पूज्य स्वामी श्री गोविंदानंद तीर्थ जी महाराज को आश्रम का सञ्चालन करने के लिए जिला अम्बा, मध्य प्रदेश से ऋषिकेश बुला लिया. उनके ऊपर आश्रम का कार्यभार सौंप कर शिवोम् जी देवास चले गए. सन 1988 में शिवोम् जी पुनः ऋषिकेश पधारे और उन्होंने गोविंदानंद जी को पूर्णतया आश्रम का सञ्चालन तथा गुरुपद प्रदान कर दिया. उसके बाद स्वामी शिवोम् जी कभी ऋषिकेश नहीं आए. 6 अप्रैल सन 2008 को शिवोम् जी की महासमाधि के बाद उनके पार्थिव शरीर को योग श्री पीठ आश्रम, ऋषिकेश में लाया गया. कुछ समय तक शिष्यों के दर्शनार्थ रखने के पश्चात उनको पवित्र गंगा नदी में विसर्जित कर दिया गया.
वर्तमान में भी परम पुज्य स्वामी गोविंदानंद तीर्थ जी महाराज आश्रम का संचालन कर रहे है. स्वामी जी छत्रछाया में आश्रम ने बड़ी तरक्की की है. आरम्भ में मिली ज़मीन के साथ ही और ज़मीन भी खरीद ली गई है. आश्रम में साधकों के रहने के लिए अनेक कमरों का निर्माण भी कराया गया है.
सड़क से आश्रम की सीढियाँ चढ़ते हुए व्यक्ति आश्रम के प्रवेश द्वार तक पहुँच जाता है, प्रवेश द्वार प्रातः पाँच बजे से रात्रि नौ बजे तक खुला रहता है. प्रवेश द्वार आँगन में खुलता है, आँगन में सुंदर मखमली घास और खुशबूदार फूल खिले रहते हैं, आँगन से गंगा नदी साफ़ दिखाई देती है. गंगा नदी का कल-कल करता बहता हुआ पानी अत्यन्त मनोरम दृश्य प्रदान करता है. कोई भी आगंतुक इस द्रश्य को निहारे बिना नही रहता. गंगा नदी के दूसरी तरफ़ गीता भवन एवं स्वर्गाश्रम दिखाई देते हैं. इनके पीछे ऊँची पहाड़ी है जिससे हमेशा बादल उठते रहते है. द्रश्य इतना मनोरम होता है की घंटों तक भी इसको निहारते रहें तो मन नही भरता.
प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पर एक रास्ता सीधा आश्रम के पीछे वाले आँगन तक जाता है. इस रस्ते के दायीं तरफ़ भव्य मन्दिर है तथा बायीं तरफ़ आगंतुकों के रहने के कक्ष हैं. आश्रम में लगभग 20 कमरे तथा 3 बड़े हॉल हैं. इनमे लगभग सौ लोगों के एक साथ ठहरने की व्यवस्था है. आश्रम के मध्य में सुंदर आँगन को फूलों से सजाया गया है. इस ज़गह पर सब्जियां भी उगाई जातीं हैं,
आश्रम के मध्य में एक बड़ा चबूतरा है. इस चबूतरे के एक तरफ़ रसोईघर तथा दूसरी तरफ़ गुरुकक्ष है, गुरुकक्ष आश्रम के वर्तमान गुरु स्वामी गोविंदानंद तीर्थ जी महाराज का निवास स्थान है. इसमे उनके सोने का कमरा, पूजा का कमरा आदि बने हुए हैं. गुरु कक्ष के दूसरी तरफ़ साधन कक्ष है, साधन कक्ष का वातावरण आश्चर्यजनक रूप से शांत रहता है. इस कक्ष में बैठकर साधक साधन करते हैं. साधन कक्ष में तीर्थ परम्परा के सभी गुरुओं के फोटो लगे हुए हैं, स्वामी श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज की संगेमरमर के बनी मूर्ति, जो साधन कक्ष के पूजाघर के मध्य में स्थित है, बिल्कुल जीवंत लगती है. सब्जियों वाले आंगन के पास ही आदि गुरु शंकराचार्य का मन्दिर है.
शाम के समय गंगा नदी के तट पर होने वाली आरती के घंटियों की आवाज़ से सारा वारावरण गूज उठता है. चारों तरफ़ आध्यात्मिकता ही आध्यात्मिकता दिखाई देती है. ऐसे वातावरण में आकर तो लगता है की शैतान भी साधू बन जाएगा. रात्रि में गंगा नदी के उस पार नीलकंठ की चढाई पर लगी हुई लाइटें देखकर कगता है मनो सितारे ज़मीं पर उतर आयें हों.
आश्रम में लोग प्रातः चार बजे उठ जाते हैं. कुछ लोग तो तीन बजे ही बिस्तर छोड़ देते हैं. प्रातः पाँच बजे तक सब साधन करते हैं. उसके बाद, सभी अपने अपने काम में लग जाते हैं जैसे की आश्रम की सफाई करना वगैरह. सुबह छः बजे चाय की घंटी बजती है. सभी लोग चाय का अनद उठाते हैं. ऋषिकेश के प्रदुषण मुक्त पवित्र एवं साफ़ वातावरण में सुबह की चाय का आनंद अवर्णनीय है. चाय के पश्चात् सभी लोग आश्रम-सेवा में लग जाते हैं. प्रत्येल आगंतुक आश्रम-सेवा को अपना धर्म समझता है.
गुरूजी प्रातः काल आश्रम में टहलते हैं. उसी समय सभी लोग गुरूजी के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद पाते हैं. आठ बजे नाश्ते की घंटी बजती है. कुछ लोग नाश्ते से पहले नहा धो लेते हैं तथा कुछ नाश्ता करने के बाद. ग्यारह बजे मन्दिर में आरती होती है. उसके बाद सभी साधन कक्ष में जाकर आरती करते हैं. बारह बजे दोपहर के खाने का समय हो जाता है. सभी लोग नीचे पंगत में बैठकर खाना खाते हैं. कुछ साधक स्वेच्छा से खाना परोसने का काम करते हैं. गुरूजी स्वयं सभी के साथ बैठकर खाना खाते हैं. आश्रम का खाना बहुत ही सादा परन्तु स्वादिस्ट होता है. मसाले वगैरह का प्रयोग कम होने के कारन सभी सब्जियों का आपना स्वाद ही खाने में आता है. खाना खाकर गुरूजी आपने कक्ष में चले जाते हैं और कुछ लोग आराम करते हैं. ज्यादातर लोग साधन कक्ष में जाकर साधन करते हैं. तीन बजे चाय का समय होता है. उसके बाद गुरूजी के पास बैठकर उनसे ज्ञान का लाभ उठाया जा सकता है. शाम को छः बजे संध्या आरती का समय होता है. उसके बाद साधन कक्ष में आरती एवं भजन-कीर्तन होते हैं. रात्रि आठ बजे खाना खाकर कुछ लोग आश्रम में टहलने लग जाते हैं तो बाकि लोग गुरूजी के पास बैठकर तत्त्व चर्चा करते हैं. ठीक नो बजे गीता का पाठ होता है. उसके बाद सब लोग सोने चले जाते हैं.
योग श्री पीठ ट्रस्ट (रजी.)
आश्रम का सञ्चालन योग श्री पीठ ट्रस्ट (रजी.) करता है. आश्रम की प्रत्येक आमदनी एवं खर्चे का पुरा हिसाब रखा जाता है. ट्रस्ट के सदस्य समय समय पर मीटिंग करके आश्रम के परिचालन का पूरा ध्यान रखते हैं.
योग श्री पीठ प्रकाशन
स्वामी श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज एवं स्वामी श्री शिवोम् तीर्थ जी महाराज ने साधकों के लाभार्थ अनेक पुस्तकें लिखीं हैं. इस पुस्तकों का प्रकाशन योग श्री पीठ प्रकाशन करता है. ये पुस्तकें साधकों को लगत मूल्य पर उपलब्ध करायी जातीं हैं.
दक्षिणा
किसी भी आश्रम की आमदनी का मुख्या हिस्सा दक्षिणा होती है, आश्रम में आने वाले साधक शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक रूप से आश्रम की सेवा करते हैं. प्रत्येल व्यक्ति को दक्षिणा की रसीद दी जाती है. जो कोई भी किताबें खरीदता है उसे भी उसका बिल दिया जाता है. आश्रम की व्यवस्था सम्पूर्ण रूप से पारदर्शी है.